Thursday, March 18, 2010

राह-ए-मंजिल..

रोते-बिलखते हम रहे,
चीखते-चिल्लाते हम जिए,
कसूर हर दम मगर एक था,
भिखारी थे जगत और फकीर खुद को समझा किये..

ना नींद की अब ज़रूरत ना कफ़न है दरकार,
छिपाए से ना छिप सके ऐसा इश्क है यार..!!
पसीने-पसीने हुआ करे कोई,
निगहबानी करते हमारी सरकार..!!

अच्छे-अच्छे की चाह रखने वालो से हमारी कुछ ख़ास जमती नहीं...,
फुलों को चुनने वाले जान लें की हम आदम से खार-खार..!!

हम कांटो से उम्मीद ना रखना तुम कोई फूलों वाली..,
चुभते हैं और कर देते हैं दामन तार-तार..!!

हमें हमारे हाल पर छोड़ दो ओ दुनियावालों..,
हर हाल में मंजूर हमें हाल हमारा ये बार-बार..!!

ना कोई शिकवा है ना कोई शिकायत है 'मनीष' को ज़माने से..,
दीवानगी ही समझिये जो बहती है अश्क-ओ-रश्क बन जार-जार..!!

कुछ अकेले शेर..

बस इसीलिए हम दोस्ती नहीं करते, की दोस्ती निभाना बड़ी मुश्किल शय है...,
कमबख्त! ये इश्क मगर हो जाता है दफ्फ़तन..!!



हर हद चाँद-सितारों की या आफताब के किनारों की...,
महज नज़रों के धोके हैं..!!
हदों के पार अनहद की टंकार है..
या यूँ कहिये की चमत्कार है..!!


इस कदर पहुंचाया है सुकून तुने मेरे दिल को,
भूल गया हूँ सब रंज-ओ-ग़म सब मुश्किल को,
मिल गया है हमसफ़र तेरे जानिब,
कल तक था अकेला राह-ए-मंजिल को..




खुद पर तू इतना तरस ना खा  इस एक-तरफ़ा कहानी पे,
दूसरी तरफ के पलड़े में मौज, मजा और रवानी है,
ये पहलु भी तेरा चुना हुआ और वो पहलु भी,
वल्लाह ! फिर किस बात की परेशानी है..!!





कैसे खोलूं मेरी तमन्नाओं और उसकी मर्जी के बीच के ये भेद..??
कैसे जी लूँ की रहे ना फिर कोई खेद..??
हर कदम अभी तो मंसूबों से भरा हुआ..,,
कैसे कह दूँ के उतर आया है वेद..??




और अंत में..,

तिनका-तिनका अपने दहन को जोड़ रहा हूँ में,
जानता हूँ हश्र अपना और दौड़ रहा हूँ में,
छिपा लेने को मुहँ सच्चाई से,
तरह-तरह के मुखोटे ओढ़ रहा हूँ में..

भाग सकूँगा कब तक यूँ अपनी परछाई से,
रफ्ता-रफ्ता सूरज से मुहँ मोड़ रहा हूँ में..

डरता हूँ कुछ इस कदर में अपनी तनहाई से,
रिश्तों की दीवारों से सर फोड़ रहा हूँ में..

हो ही जाए अबके जो होनी है जग-हँसाई,
हौले-हौले तस्वीर अपनी तोड़ रहा हूँ में..

दिया है हौसला-ए-इश्क तो सब्र-ए-तमन्ना भी दे,
गुनाह बक्श दे के होड़ तुझसे लगा रहा हूँ में..





1 comment:

  1. आग है कि बारूद है आपके लफ्ज़ों में
    दरिया की रवानी है या तेग़ोशमशीर है आपका बयान
    स्व. दुष्यंत कुमार के मुताबिक़
    वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
    माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है.
    http://samvedanakeswar.blogspot.com

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