Thursday, August 26, 2010

इंसानी दिमाग


इसी दिमाग ने सोच-सोच कर
इंसान को हलकान किया है,
दबा-दबा दिल की आवाज़
ये क़त्ल-ए-आम किया है,
कसूर दिमाग का नहीं मगर...
इंसान ने खुद ही
एक गुलाम को गुलफाम किया है..!!
दिल की सुन ले चाहे
या करे फिर वो दिमाग की,
हर हाल मगर इंसान ने
खुद को पर-ए-शान किया है..!!
दिल-ओ-दिमाग की जंग से
वो खुद को अलग रक्खे भी क्यूँकर,
दिल ही दिल में जब
खुद को यूँ तख़्त-ए-निशाँ किया है..!!
हुनर बर्दाश्त-ए-दोआलम का
सिखा कीजे 'मनीष' से,
दीवानावर हो जिसने
मकीं को मकां से लामकां किया है..!!

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