Thursday, February 24, 2011

ये सच

कितना अधुरा लगता है तब,
जब बादल हो और बरसात ना हो...
जब ज़िन्दगी हो और प्यार ना हो...
जब आँखें हो और प्रकाश ना हो...
जब तुम हो पर साथ ना हो...
( ये उपरी  ५ पंक्तियाँ एक टेक्स्ट मेसेज का मजमून हैं... बस उपरी-ऊपर ही हैं...)






ये अधुरापन..
ये अकेलापन..
ये खालीपन..
लाख करो कोशिश कमबख्त भरता ही नहीं...
ना पूरा होगा ये ख्वाब..
ना कोई हमदम मिलेगा..
और.,
ना ही इसे भर सकेगी दुनिया..
यूँ ही बना रहेगा
ये सूनापन..
सदैव, शास्वत, सनातन...
की कुदरतन
इसकी फितरत ही कुछ ऐसी है...

It's like that one black hole in the milky way which gobbles up everything that it comes accross...yes even entire universes, and yet remains ever empty.............


पर ना-उम्मीदी की भी
कोई जगह नहीं है यहाँ...
मुँह लटका फिरने को
आए नहीं हम यहाँ...
क़ुबूल हो जो दिल से
ये सच,
तो मन  एक हो जाए
इस अधूरेपन से ..
इस खालीपन से..
या..,
यूँ कहिये की
"मन  इश " हो जाए.. 
अभी और यहाँ...!!


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