Saturday, April 30, 2011

माली और गुलाब




गुलाब को
खुशबू बिखेरने से
कौन रोक सकता है भला..?
गुलाब है ही
इस कदर हसीन
के खुद को दीवाना होने से
कौन रोक सकता है भला..?
माली खुद भी तो
यही चाहता था
की गुलाब उसका
खिले, महके, मुस्कुराये..,
व्याकुल है
आज मगर वो
के अत्तारों को बाग़ में आने से
कौन रोक सकता है भला..?

तोड़ लेंगे ये व्यापारी
उसके गुलाब
मसल देंगे, कुचल देंगे,
क़ैद कर लेंगे उनकी खुशबुएँ बोतलों में
फिर बेचा करेंगे मनचाहे दामों पर
छिड़क लेंगे अपने जिस्मों पर
छिपा लेंगे चंद घंटों के लिए
अपनी महत्वाकांक्षाओं की बदबूएँ
आखिर..
आदमी को बाजारू होने से
कौन रोक सकता है भला..?

सुनी जो गुलाब ने
माली की दर्द भरी ये व्यथा
सहर्ष तैयार हो गया वो
मुरझा जाने को
पर मुरझाना भी तो
आता है एक निश्चित वक़्त के बाद
वक़्त ही तो खेंच ले आया है
इन अत्तारों को बागों में
और फिर... 
वक़्त को अपने करतब दिखाने से
कौन रोक सकता है भला..?

तब एक नन्ही सी कली ने
एक तरकीब दी सुझाई
कबीर की ये पंक्तियाँ
माली को हँसते-हँसते सुनाई

"माली आता देख कर
कलियाँ करें पुकार
फूल ही फूल चुन लिए
काल हमारी बार"

तो क्या करे माली
चुन ले वो ये फूल..??
चढ़ा दे किसी देवता के चरणों में..??
या सजा लेने दे किसी देवी को अपने जुड़े  में..??
क्या करें, क्या ना करें
के इन सवालों को
दिमागों में आने से
कौन रोक सकता है भला..?

अक्षय जवाब दिया
अमृता प्रीतम जी ने
इमरोज़ के हवाले से

" जीने लगो
तो करना
फूल ज़िन्दगी
के हवाले
जाने लगो तो करना
बीज धरती के हवाले "

Thursday, April 28, 2011

चकमक मा आग

"ज्यूँ तिल माहि तेल है
ज्यूँ चकमक मा आग
तेरा साईं तुझमे बसा
जाग सके तो जाग"
                                               - कबीर


तुम्हारी समझदारी में वो समझ नहीं
जो दीवानगी मेरे दीवानेपन में है
कामयाबी तुम्हारी उस तरह नहीं दमकती
चमकती जिस अदा से मेरी मुफलिसी है...

तुम्हारी ज़िन्दगी ज़िन्दगी
और हमारी ज़िन्दगी दोज़ख..!!
सोचता हूँ दर्द से
मेरी कोई अय्यारी तो नहीं..??

तुम करो तो मोहब्बत
हम करें तो हवस..!!
जिस्म तुम पर कुछ
जियादा ही भारी तो नहीं..??

तुम्हारी मन्नतें लाज़मी
और हमारी दुआएं बेतुकी..!!
मांगने से ही कहीं
अल्लाह को कोई दुश्वारी तो नहीं..??

जमा किये जाते हो
जो यूँ तुम सारी दौलतें..!!
मौत को दगा दे जाने की
बाखुदा..कोई तैय्यारी तो नहीं..??

जिसे देखो वही गाफ़िल है दिन-रात
तरक्की के ख्यालों में..!!
वल्लाह ! के तसल्ली ये हमारी
कोई बिमारी तो नहीं..??

सब कुछ हासिल करके
कैसा है ये सूनापन..!!
ज़िन्दगी कमबख्त
कर गई कोई गद्दारी तो नहीं..??

देख अपना जनाज़ा
कल बोल उठे 'मनीष'..!!
बाकी रह गई दिल में
तमन्नाओं की कोई गुनाहगारी तो नहीं..??

Wednesday, April 27, 2011

बड़े - छोटे

can you see the young & the old in this pic..?
Optical illusion
that is what
this world
is.


बड़े, जब अपने बड़े होने का
दंभ जता दें
तो कितने छोटे हो जाते हैं,
संस्कार जब केवल
एक पुरानी आदत रह जाएँ
तो कितने ओछे हो जाते हैं,
समय तो हर दम
अपनी रफ़्तार से ही चला है,
हम ही जब
उसके साथ ना चल पायें
तो कितने थोथे हो जाते हैं...

माना के लिपे-पुते चेहरे,
नग्नता, रोबोट सी ज़िन्दगी
में कुछ भी बेस्ट नहीं,
झूठे चेहरों,
झीने वस्त्रों और छदम मानवता के आगे
मगर ये छोटे पड़ जाते हैं...

ये भी ठीक
की होड़ सी लगी है हमारे बीच
नंबर वन होने की,
रोगी को क्या हम पर दोष दें
जब रोग यहाँ पर
बचपन से ही थोपे जाते हैं...

हाँ.. ये सच है
की अपनी गरीबी के लिए
दूसरों को दोष देने से आसान यहाँ कुछ भी नहीं,
मुश्किल मगर ये
के इश्क में यहाँ
हर मत्थे अपने ही मत्थे हो जाते हैं...

Tuesday, April 26, 2011

सिक्के के पहलु



रास्ते ही जब
मंजिल लगने लगे
मंजिलें अयाम हुईं...

सफ़र ही जब
सुकून-ए-मुलाक़ात दे गया
मुलाकातें तमाम हुईं...

अब ना कोई दर्द
ना रंज-ओ-ग़म
ना ख़ुशी है कोई..,

ज़िन्दगी खुल के
गले मिली जब मौत से
परदेदारियाँ हराम हुईं...

दिल खोलने में
यारोँ को कब परेशानी थी

ये अदा तो
दोस्तों की जानी-पहचानी थी

मुश्किल तो आती थी
बटुए को खोलने में..,

सिलने चले जब
जेब कफ़न में
समझदारियाँ हराम हुईं...

इश्क में हमारी
यूँ हँसी उड़ जाएगी
ये कभी सोचा ना था

यादें हमारी
यूँ हमें रुलायेंगी
ये कभी सोचा ना था

डरते रहे
ता-उम्र हम
अपनों के दफ़न से..,

देखा परायों को
 जब होते अपने ही साथ ख़त्म
दुश्वारियाँ हराम हुईं...

मत लो
मेरी चिंता अब कोई भी

करो ना
मेरा अब एतबार कोई भी

इस सरफिरेपन का
नहीं है अब इलाज कोई..,

दिल काबिज हुआ
जिस दिन दिमाग की जगह
होशियारियाँ हराम हुईं...

परखने चले जो हम
आंसुओं की ज़बान

जाना की बस
अपने ही मर्तबे से
थी हमारी पहचान

देखा किये हम
बस अपना ही पहलु..,

दिखाया जब वक़्त ने
आईना हमें
तरफदारियाँ हराम हुईं...

कैसे आ जाऊं
मैं तुम्हारे पास

कैसे बुझाऊं
मैं ये अबूझ प्यास

तुम ही बताओ ना
ए मेरे हमनवाज़..,

'मनीष', छूटी जब
ये दोयम सी आस भी
दुकानदारियाँ हराम हुईं...

कुछ भी
माँगने-देने लायक
ना सीरत ना सूरत है मेरी..,

बस..

एक ज़िन्दगी है
जो जीता हूँ
दम-ब-दम...

Monday, April 25, 2011

LOVE QUOTES

Medicines can be given from the outside, but LOVE cannot be. It has to be felt from the inside.

Marrying for reasons other than LOVE leads to the disaster called family.

No wonder....they hate LOVE stories.
They find out quite early in life that their parents are not in LOVE but in some kind of stupid n ugly compromise called marriage

LOVE ain't about getting. It is all about giving
The joy of giving is much more satisfactory than the pleasure of receiving.Better still, if one gives - not to get joy but because giving comes naturally to him.

It is natural to seek permanency in LOVE as we are indeed one inseparable part of that Shaswat Sanatan Purn LOVE called LIFE.
Birth and Death are temporary features of life but life they are not.

The difference between knowing theory of LOVE and actually practicing it in day-to-day life is what seperates a philosopher from a lover.


Man is a bad case....isnt it?

Thursday, April 21, 2011

मिले मिले न मिले...



खूब कर लो तुम मुझे परेशान
के फिर ये शान मिले मिले न मिले...
खूब कर लो तुम मुझे बदनाम
के फिर ये नाम मिले मिले न मिले...


लगा सकते हो तुम मुझ पर
उम्र भर के पहरे,
खूब कर लो इंतज़ाम
के फिर ये जान मिले मिले  न मिले...

कोई कसर बाकी न रख छोड़ना
तुम मेरी मज़म्मत में,
खूब कर लो हैरान
के फिर ये इंसान मिले मिले  न मिले...

भटकता दिखूँ जो में तुम्हें
इस दुनिया के गलियारों में,
खूब ले आना तुम तूफ़ान
के फिर  ये माझी  मिले मिले   न मिले...

कुचल दो तुम मेरी मुखालफतों को
ग़ज़ब की बेदर्दी से,
खूब कर लो लहुलुहान
के फिर ये लहू मिले मिले  न मिले...

लटका दो तुम मुझे सूली पे
के  आज मैंने खुद को कह दिया है खुदा,
खूब ले आओ क़त्ल के साज़-ओ-सामान
के फिर ये जिस्म मिले मिले  न मिले...

क़ैद कर लेना मेरी आवाज़-ओ-मुस्कान 
बा-वक़्त-ए-फना,
खूब जुटा लाना नमाज़ी-ओ-मुसलमान
के फिर ये अजान मिले मिले  न मिले...

आँसू बहाता  दिख जाए कोई काफिर जो मेरी कब्र पे
तो दिखा देना तुम उसे पूरी ही तस्वीर,
खूब करवा देना तसल्ली-ओ-एहतराम
के फिर  इश्क ये आसान मिले मिले न मिले...


Monday, April 18, 2011

THE DIVINE FEMININE...


Dear Divine Feminine,


i share a few thoughts for you to ponder upon...

Please do respond if you feel obliged to do so...

WOMEN oh! WOMEN...


May you first understand the concept of NON-DUALITY and then may you realise it too...


Very very few women like Meera, Radha, Sita have been able to actualise the concept and hence you see very few women attain the state of total enlightenment or bliss...


Most are happy with their so called stand that they can love only one man in their life. Probably they think & believe that they will become a whore if they love more than one person. This is so because they know not that there is no other in this world.


Probably, they trust too much on the innumerous meta-physical forms that the unlimited LOVE or SPIRIT or GOD (call IT whatever you please), manifests itself into.This might be so because they themselves give birth to few such bodies in their lives and get immensely attached to their own part of body.


In fact, motherhood should make it easy for them to know that this world (LOVE, SPIRIT or GOD call IT whatever you please)is same in nature to them in producing its creation. The creator is the created and the act of creation too.


Sadly, this subtle truth finds itself very difficult to be settled in the minds of men and even more painful to get entry into the heart & womb of today's thinking women.

For, what are women today but a man in a woman's body...???

Well...most of them, i mean... :-)

The women have chosen to be what they are today and blaming one or the other for their miserable state will further complicate the daunting of the principle of the divine feminine.

Women oh! women...


Allow IT to happen to you because as of Now, IT never happens or happens very rarely...

In my view, it happens so till date because women consider SEX bigger than LOVE. They can LOVE many but they can make SEX or be passionate with only that one whom they think they passionately love.


Is it not putting PASSION or SEX before LOVE...???


Is it not belittling all other relationships formed by the same catalyst of limitless love...???

Is it not choosing or preferring or rating one over the other...???



This... - when there is NO OTHER...!!!



Hope you CHOOSE to read the link below too for better understanding of the feeling of otherness :-)

 
 
Man is bad case....isnt it?



Wednesday, April 13, 2011

हे भगवान्..!!!



इंसानों का रचा हुआ
भरम है भगवान्

दुनिया का सबसे बड़ा
झूठ है भगवान्

जो है ही नहीं
उस से आशा कैसी - लड़ाई कैसी..??

कमजोर बनाये जो इंसा को
वो ताक़त है भगवान्...

क्या आस्तिक और क्या नास्तिक
फंसे हुए हैं सब इस चक्रव्यूह में

जो है वो ज़िन्दगी
जो नहीं वो भगवान्...

हे भगवान्...
हे भगवान्...
हे भगवान्..!!!

कुछ भी मांगने-देने की
ना सूरत ना सीरत है मेरी...,

बस एक ज़िन्दगी है गुनाह भरी
जो जी लेता हूँ मर-मर कर..!!


मक्कारी की हद तो देखिये जनाब...,

गुनाह करें वो और इलज़ाम लगाने को ज़िन्दगी..!!


सच्चे दोस्त फ़क़त सच्चों
को ही नसीब होते हैं...,

हमने तो मियां
कभी कौव्वों को मोती चुगते नहीं देखा..!!


अहंकारी हैं वो
जिन्हें ये ख्याल है की वो
दूसरों को सुखी या दुखी कर सकते हैं...,

चींटी ये सोच रही है मियां
की वो न होती तो इस दुनिया का क्या होता..!!



विचार पवित्र-अपवित्र होते अगर
तो सारे विचारशील कभी न कभी
बुद्ध हो ही जाते...,

टूटा जो द्वैत का भरम
तो गौतम जंगल से सुभद्रा की ओर चले..!!





Saturday, April 9, 2011

पिहू-पिहू



आज पपीहे की पिहू-पिहू क्या सुनाई नहीं पड़ी...,
सारे फूल मुरझा गए बाग़ के...
सारे पेड़ झुलस गए आग में...
क्या उनका भी पिया उनसे रूठ गया....!!

कोयल भी है आज गुमसुम...,
क्या उसका गला भी रूंध गया.....!!

सूरज तप रहा आज अपनी ही अगन में...,
क्या उसका भी सूरज डूब गया.....!!

जीवन  चल रहा आज मंथर गति से...,
क्या उसका भी समय कहीं रुक गया....!!

चिड़ियाएँ  कलरव करतीं नज़र नहीं आ रहीं आज...,
क्या उनका भी माहि चुक गया....!!

इंसानी ख्यालों में आज वो तेजी नहीं...,
क्या उन सब का भी दिल टूट गया....!!

हवाएँ मार रही आज गर्म-गर्म थपेड़े...,
क्या उनका भी बादल कहीं छुट गया....!!

नदिया बहती है आज नीरस-नीरस...,
क्या उसे भी संगीत भूल गया....!!

पहाड़ों पर आज कोई पशु-वृन्द नहीं...,
क्या उनका चरवाहा भी सूली चढ़ गया....!!

चाँद अकेला है आज अपनी चाँदनी के साथ...,
क्या उसका भी तारों से रिश्ता टूट गया....!!

अरे...!

ये किसने हौले से पिया-पिया की हुँक है उठाई...,
लगता है दिल फिर धड़क गया....!!
सावन बे-मौसम बरस गया...!!
दुल्हन सा कोई सज गया....!!
बेकार न कोई वक़्त गया....!!
एक के होने से दूजा उसमे बस गया....!!


Friday, April 8, 2011

कलयुग का नायक - कलिनायक


असल जन-आन्दोलन तब होता है
जन-जन जब
भ्रष्ट आचार से मुक्त होने का
अभीप्सु होता है...

लोक जन को
सन्देश लिख भेजना काफ़ी नहीं
अंतर्मन से खुद को
निर्मल होना होता है....

हर पल सार्थक प्रयास होती जब हर पहल
तब कहीं जाकर भास्कर सा चरित्र
दैनिक जीवन में उदय होता है...

चंद नेताओं-अफसरों-बाबुओं पे
ठीकरे फोड़ देने से क्या होता है
बबूल हो दिल में
तो आदमी आम कहाँ होता है...

खोखले नारे नाकाफ़ी हैं
अन्ना के और हजारों के
जनता है जैसी
वैसा ही तो जन-तंत्र होता है...

किस-किस के पुतले जलाएंगे आप जनाब
यहाँ तो घर-घर में एक रावण होता है...

जला ले जो खुद को अपनी ही आग में
वो राम तो जाने कहाँ सोता है...

दुहाई देता फिरता है मज़बूरी की यहाँ हर कोई
दलालों और दलीलों से ही तो तू मगर मनमोहन होता है...

रिश्वत लेता-देता फिरे है जब तू बेशर्मी से
लेते-देते राजा हो जाए कोई
तो फिर क्यों तू दहाड़े मार रोता है...

समझा...

समझा...के समझते हो खुद को तुम छोटे-मोटे घपलेबाज फकत
बड़ा चोर तो वो जो पकड़ा जाए
या फिर
कलमाड़ी सा जिसका बैंक बैलेंस होता है...

चोरी फिर चोरी है
चाहे दो रूपये की हो या खरब की
याद रख...
लाखों के चढ़ावों से भी
गुनाह ना तेरा एक कतरा भी कम होता है...

दाऊद भोगता गर नरक अपना
जलते हुए पाकिस्तान में
तो तू भी जलता है रोज कश्मीर की तरह
चैन से लेकिन रात को
ना तू ना वो सोता है...

दो पेग लगा कर सोचता है तू
की नींद आ गई
ठीक भी है...
की बेहोशी को खुद का कब होश होता है...

पैसा ही तेरा खुदा है जब
तो मंदिर जा जा कर तू
उस पत्थर के आगे क्यों भिखारियों सा रोता है...

शायद...अन्दर ही अन्दर डर है तुझे
की सचमुच में कहीं कोई खुदा हुआ तो..??
फिकर ना कर..
वो दो आना जो तेरी जेब में है मौजूद
वही तो बिडला के मंदिर में होता है...

जा भाई जा...

सड़क चुरा, बिजली चुरा, पानी चुरा
कर बचा, जान बचा, धन बचा
ज़र खरीद, ईमान खरीद, ज़मीन खरीद
जोरू बेच, धर्म बेच, सपने बेच
राडिया को पटा
टाटा को हटा
खुद को बिठा
सम्बन्ध बना
फिर उनको भुना
किसी और के हक पे रोटी तेरी सिक जाए तो
 देर रात तक जश्न मना...
ऐश को बुला
मजमा लगा
बेब्स को नचा...
जो करना हो कर...

क्यूँ खाली-पिली मगर नकाब तू ये ओढ़ता है
फ़ोकट में कायेकू तू अन्ना के संग मरता है
अन्ना तो चिरकाल से अनशन करता जंचता है

और फिर...

वो तो सत्य के लिए लड़ता है
पर तू क्यूँ भरी जवानी में यूँ मरता है

क्या कहा...??

कुछ बन जाने का, कुछ हो जाने का नाटक है ये भी...??
दूसरों को गिरा खुद को उठाने की कवायद है ये भी...??

वाह भाई वाह..!!
मान गए उस्ताद...!!

इसे ही तो कहते हैं कलयुग का नायक - कलिनायक

चलो कोई नहीं जी...
इसी बहाने कुछ सर तो कटेंगे
कुछ नए सर तो उठेंगे
कुछ तो
नया होगा कर गुजरने को

क्रिकेट देख-देख वैसे भी बोर हो चुके हैं
सारे देश घुल-मिल जाएँ एक रंग में
तो मन को जंग सा मजा नहीं आता

ये खेल लेकिन जरा हट के है
ना कोई जीतता है
ना कोई हारता है
भारत बस..जार जार रोता है

तो क्या हुआ
रोने दो...

सदियों से भारत में  यही तो होता है
सदियों से भारत में  यही तो होता है...



Man is bad case....isnt it?


Wednesday, April 6, 2011

इश्क अदा




इश्क हो रहा
सुबह-ओ-शाम
आते-जाते छेड़े है वो मुझे
यूँ सर-ए-आम
कभी कोहनी
कभी चिकोटी
तो कभी गुदगुदी
उफ़..क्या अदा से पिलाते हो तुम
ये निस्बत के जाम..!!

हाए..कितना प्यार भरा
ये गुस्सा तेरा
दिल करता
फिर करूँ एक शरारत
फिर लूँ   हँस के तेरा नाम..!!

काश..आ जाए
मुझमे भी
कुछ तेरी अदा
हो हिस्सा तेरा
आ जाऊं मैं
शायद किसी के काम..!!

Sunday, April 3, 2011

रिश्ते-नाते


मेरी माँ
मुझे एहसान फरामोश कहती है
क्योंकि..
मैं वो सपूत ना बन पाया
जो उसने पैदा किया था रामनवमी के दिन...
एहसान जो उसने मुझपर किया
उस एहसान का क़र्ज़ मुझपर अभी बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना उसने कोई अम्बानी या तेंदुलकर पैदा किया..??

मेरे पिताजी
मुझे सफेदपोश ज्ञानी समझते हैं
क्योंकि..
मैं वो नहीं कहता
जो वो ठीक समझते हैं...
ब्रह्म ज्ञान जैसा उन्होंने मुझे समझाया
उस ज्ञान का भ्रम अभी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्या उन्होंने मुझे वो ही नहीं दिया
जो विरासत में उन्हें उनके पिता से मिला..??

मेरी श्रीमती
मुझे जिस्मफरोश जानती है
क्योंकि..
मैं वैसा पत्निव्रता ना रह पाया
जैसी पतिव्रता वो खुद है...
प्रेमी बन उसे ठेस है पहुंचाई
उस ठेस का दर्द अब भी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार में मगर
की
इस भरे-पुरे संसार में
कमसकम एक पुरुष तो ऐसा वो मुझे दिखा देती
जिसने अपने ख्यालों में भी परनारी को ना छुआ हो..??

मेरी बहन
मुझे एक जिद्दी और असफल इंसान समझती है
क्योंकि..
मैं उन प्रतिभाओं का दोहन ना कर पाया
जो वो समझती है की मुझमें अकूत है...
उसकी अपेक्षाओं पर मैं खरा ना उतर पाउँगा
ये बतलाना अभी उसे बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना मैं उसके हिसाब से होनहार हो पाया..??

मेरी माशूकाएँ
मुझे बेवफा समझतीं हैं
क्योंकि..
मैं कुत्तों सा वफादार तो ना हो पाया
पर बात-बात पर उन्होंने मुझे कटखना जरुर पाया...
उनकी रूहें जो आज दर-बदर भटकतीं हैं
उन रूहों का भार अब भी मुझ पर बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना मालिक ने मुझे कुत्ता ही बनाया..??

मेरे दोस्त
मुझे खुदपरस्त मानते हैं
क्योंकि..
मैं उनके उतने भी काम ना आया
जितना दाम उन्होंने मुझ नाचीज पर लगाया था...
निवेश जो उन्होंने मुझ पर किया
उस निवेश का उधार अभी मुझ पर बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्योंकर ना उन्होंने एक बुत को दोस्त बनाया..??

मेरे भाई
मुझे बहुत छोटा समझतें हैं
क्योंकि..
मैं उनकी नज़र में वो छोटा हूँ
जो कभी बड़ा ना हो पाया...
उनके बड़प्पन का में समुचित आदर ना कर पाया
इसका छोटापन अब भी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना उनका बड़प्पन किसी के भी काम आया..??

मैं ही वो कलयुग का रावण हूँ शायद
जो जलने को रामनवमी के दिन पैदा हुआ...

मैं ही वो स्वामी हूँ शायद
जो कपट से पूर्ण है...

मैं ही वो नवाब हूँ शायद
जिसका हरम औरतों से भरपूर है...

मैं ही वो कंस हूँ शायद
जो अहम् से चूर है...

मैं ही वो यार हूँ शायद
जो नशे में मगरूर है...

मैं ही वो भारत हूँ शायद
जो पद, नाम, लोभ से ग्रसित है...

पर सवाल ये है शायद
की आप क्या हैं जनाब..??


आप कहीं कृष्ण तो नहीं..
या फिर राधा..??






Man is bad case....isnt it?

Friday, April 1, 2011

रौशनी



प्यार रौशनी नहीं जो मिलनी ही चाहिए
 मांगने वालों को हर चीज मगर सस्त चाहिए

चाहने से ही मिल जाता है गर प्यार
सूरज कभी न मेरा अस्त चाहिए

मिली हुई है मुफ्त में यूँ तो ये रौशनी
देखने को मगर दिल एक मस्त चाहिए

पाक नज़र काफी नहीं दीदार-ए-नूर के लिए
झाड़ सके जो परदे हस्ती के ऐसा एक हस्त चाहिए

लुटे-पिटे दीखते हो 'मनीष' ज़िन्दगी के आयाम में
हौसले मगर ना-आयामी के कभी न पस्त चाहिए