Thursday, August 4, 2011

मैं और तुम

You & I

तुम हो
और
मेरे आस-पास हो
ये एहसास ही काफी है
तुम हो
और
मेरे अन्दर-बाहर हो
ये अंदाज़ ही काफी है
फिर तुमसे मुलाक़ात भी हो जाए
तो क्या बात है...
हो सकूँ गर में तुमसे रु-ब-रु
तो काएनात है...
महसूस कर सकूँ
गर दो जिस्मों को एक जान होते हुए
तो क्या बात है...
बाद मोहब्बत भरी मुलाक़ात के
गर रह जाए कोई तमन्ना बाकी
तो वाहियात है...
जान लो फिर की अभी बस
समझी-समझाई सी एक बात है
उतरी नहीं जो दिल-ओ-जान में
वो अधूरी बात है...
नाकाफी है
इश्क का एहसास अभी नाकाफी है...
कुछ है जो है अब भी तेरे-मेरे दरमियान
ये 'तेरे-मेरे' की पहचान अभी बाकी है...
पड़ा हुआ है अक्ल पे अभी झीना सा एक पर्दा
गिरना जिस परदे का मुद्दतों से बाकी है...
सोच-सोच कर हुआ जो राई से पहाड़
उस सोच की गिरफ्त अभी बाकी है...
तिल का ताड़ बनाये जो मन
तेरा उस मन का इश होना अभी बाकी है...
वो अभिलाषाओं की अभिलाषा अभी बाकी है...
तुम मैं और मैं तुम होना अभी बाकी है........!!

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