Tuesday, August 9, 2011

कहते हैं की;

कहते हैं की;

" सत्य परेशान तो हो सकता है
पर पराजित कभी नहीं होता "

सवाल ये मगर

की

क्या वो सत्य पूर्ण-सत्य है
जो परेशान हो जाए ek lamhe को भी..??

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वो
खून बहाए
वो
दूध पिलाए
वो
पौरुष जगाये
कुदरतन...
वो
माँ भी
वो
पोषक भी
वो पत्नी-प्रेमिका भी
फितरतन...
और
तू..??

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भेजा उसे था ek फूल
वो गुलशन हो गया
दिया उसे था ek बोसा
वो चमन हो गया
जादू है ये
उसकी मस्त-निगाही का
क्या था मैं
और
क्या हो गया..??

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कश लगा
हर ek सांस पे
पी ले
प्राणों से प्राणों की हला
इश्कां हो  जा
दिल से
मिटा नकली
अक्ली affairs का सिलसिला
माशूका बना ले
मौत को
flirt बन तगड़ा
बीमे-शीमे
ke चक्कर छोड़
premium  का
लफड़ा है बड़ा
तू  मरेगा
दूसरा भरेगा
फिर claim  का
झगड़ा होगा खड़ा
तू मरे
और दूसरा मौज उड़ाए
ये कैसा दुखड़ा है पड़ा
बदले में
फोटू पे तेरी
रोज़ माला भी पहनाये तो
जैसे लगाता हो कोई
टाट में मखमल का थिगडा सड़ा
तू तो मर गया
और
उसका तो
न बाल बिगड़ा
न नाख़ून तक ज़मीन में गड़ा
खाली-फ़ोकट
मर-मर ke जीया तू बरसों
इससे तो
जी-जी ke मर जाता तू परसों
कमसकम
सेंक सकता न कोई
तेरी चिता पे
 यूँ दाल-बाटी
या
कबाब वाला टिकड़ा बड़ा
कहे 'मनीष'
शब्दों को चबा-चबा
सुन सके तो सुन ले
की ये कलाम नहीं सोने में जड़ा
लिखता है
अक्षरों को दबा-दबा
पढ़ सके तो पढ़ ले
की सच होता नहीं
किसी का भी सगा
हाँ मगर...
सत्य है अद्वैत

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दुःख है क्या
और
सुख है क्या
पता नहीं...
रंग है क्या
और
नूर है क्या
पता नहीं...
ज़िन्दगी है क्या
और
मौत है क्या
पता नहीं...
सपना है क्या
और
हकीकत है क्या
पता नहीं...
सच है क्या
और
झूठ है क्या
पता नहीं...
अपना है कौन
और
पराया है कौन
पता नहीं...
बस..,
इतना ही जानू हूँ
की
मुझे मेरा कुछ पता नहीं
फिर हूँ भी
की
नहीं भी हूँ
पता नहीं...

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तराशने चले
जो हम खुदको
दोस्तों की
अंदाज़-ए-नज़र से..,

जाना हमने
की
हज़ार जिंदगियां
भी नाकाफी हैं
'मनीष' तेरी मरम्मत को..!!

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दूसरों पर
दोष मढना
उतना ही आसान है
जितना मुश्किल है
खुद को
खुदा कहना . . . . . . . . !!

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kahun kise
और
sunta कौन है
लिखूं किसे
और
पढता कौन है
khoye हैं जो
kal की kal-kal में
aaj और ab से
unka रिश्ता कब है



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