Saturday, February 25, 2012

अक्ल का चश्मा



दूर-दराज और निकट-पास की सब चीजें
साफ़ नज़र आती हैं मुझे..,
जाने क्यूँ मगर फिर भी
अपनी अक्ल पर नंबर का चश्मा लगाये फिरता हूँ मैं..!!

इलाज मेरे मर्ज का
बाखूबी मालूम है मुझे..,
जाने क्यूँ मगर फिर भी
दवा-दारु के लिए हाकिम दुनिया में ढूंढता फिरता हूँ मैं..!!

या तो लौ लग गयी
या अँधेरा है अभी,
या तो होश आ गया
या बेहोशी है अभी,
आधा-अधूरा तो यहाँ
कुछ भी नहीं,
या तो हकीकत नज़र आ गयी
या सपना है अभी...

सारे "अगर" और सारे "मगर"
को हटा कर ज़िन्दगी को जो देखा जनाब..,
सारे सवाल खुद-बा-खुद
जवाब बन गए जनाब..!!

कोशिशें जब पाने-खोने के पार हो जाती हैं,
तदबीरें सारी जब नाकाम हो जाती हैं,
तब बनती है किस्मत कुछ ऐसी,
देख जिसे कुदरत भी मुस्काती हैं...

फिर वो यार नहीं
जो याद करने की भी ज़हमत है उठाता..,
इश्कां सब-कुछ भूलकर भी
कुछ भी भूल ना पाता..!!

दिल लुटाने के लिए
दिल का होना भी जरूरी,
धोका खाने के लिए
उम्मीदें रखना भी जरूरी,
दर्दी अपने दर्द का
इश्तेहार नहीं करते,
किसी की हँसाने के लिए
खुद पर हँसना भो जरूरी...

इश्क कोई समस्या नहीं की हल ढूँढा जाए..,
मंजिल की वो करें तलाश जिन्हें सफ़र में आनंद ना आये..!!

आपने ही खो दिया है बचपन अपना
अक्ल लगा-लगाकर
रो-रोकर
उम्र बढ़ा-बढ़ाकर
वर्तमान में आइये हुजुर
नैय्या तैरेगी जरूर...

बस चेहरे पर ही नज़र रखते हैं
ये इल्म-ओ-सुखन वाले..,
नीचे
और नीचे
अन्दर तक
देखने की नज़र रखते हैं
बस..ये दिन-ओ-ईमान वाले..!!

मोहब्बत नहीं तिजारत खुदा है यहाँ,
दिमाग नहीं दिल बुरा है यहाँ,
तलवे चाटो ज़माने के तुम भी 'मनीष',
के ज़माना ही तय करता ज़मीर है यहाँ...

Wednesday, February 8, 2012

बेवडा इश्क का


खोल दे
खोल दे ना...
बोतल तू तेरी...
पिला दे
पिला दे ना...
वाइन तू तेरी...
लगा दे ना मुहँ से मेरे
वो स्ट्राबेरी वो चेरी...

क्या करूँ...
के  पिला-पिला कर
तुने मुझे बेवडा बना दिया
नशे का मुझे चस्का लगा दिया
कुछ ऐसे अदा से पिलाया है इश्क तुने
की सारा का सारा आलम हिला दिया...
कर ले गुस्सा
मार दे मुक्का
तोड़ दे मेरी नाक
काट ले मेरी जुबान
खींच ले मेरे कान
उधेड़ डाल मेरी चमड़ी
पर पीने दे मेरी आँखों को
तेरी हर एक अदा
की
तेरी इन्ही अदाओं ने तो
मुझ नाचीज को दीवाना बना दिया...
पीने दे मुझे हर लम्हा
मेरी आखरी साँस तक
की फिर ना दुबारा पीने की तलब लगे कभी
की फिर ना दुबारा जाग के कह सकूँ कभी
की..,
क्यूँ तुने मुझे खुद से जुदा बना दिया
क्यूँ तुने हमें दो जिस्म एक जान बना दिया
क्यूँ तुने ये दो-आलम का जहाँ बना दिया...??
क्यूँ..?
कब..?
कहाँ..
ख़त्म कर दे ये सारे सवाल
की सुना है हमने
की इश्क में कोई क्यूँ नहीं होता
होता है जो बस...इश है होता !!
देखा ना !!
मन मेरे 'मनीष' ने
आज फिर मुझे उलझा दिया
मेरे साथ तुम्हें भी
अपना सा बना दिया....!!

Saturday, February 4, 2012

देखा-देखी की है ये बात...



तेरे हर घर की इमारत हमने बुलंद देखी
इबादत भी देखी,
मोहब्बत भी देखी,
रंग-ओ-नूर की बरात भी देखी...
देखा-देखी की है ये बात
कहते-सुनते न किसी को देखी...

तू ही तू छाया हुआ है चहुँ ओर
तस्वीर ना तेरी कभी मगर मुकम्मल देखी...

गर्म है तेरे ही दम से तेरा ये संसार
ठंडक ना कहीं मगर तुझ सी देखी...

आग है तू मेरे चूल्हे की
बरसात ना मगर कोई तुझ सी देखी...

तू भूख भी, तू प्यास भी
तसल्ली ना मगर कोई तुझ सी देखी...

ishQ

ishQ ikraar bhi
ishQ takraar bhi

ishQ haqeeqat bhi
ishQ vichaar bhi

ishQ khuda bhi
khudai bhi
aur hai khuddaar bhi...

samajh sakey jo ishQ ko
vo mera dildaar nahi..!!

jaan le aye mann ki
ishQ me hota koi Q nahi..!!

halaf hai ye
hai ye koi sawaal nahi..!!

mat khade kar tu fijul ke bawaal
ishQ hai ye koi kataar nahi..!!