Thursday, March 15, 2012

लायक नहीं नालायक हूँ मैं

इबादत मेरी
मुरादों को पूरी करने के लिए नहीं
आँसूं मेरे
आँखों की ख़ूबसूरती के लिए नहीं
हूँ
जब तक मैं किसी वजह के लिए
हूँ मैं
किसी  लायक नहीं   

असर हमारी दुआओं में होता अगर
यूँ खुद के खुदा हम ना हुए होते..!!

खुदी हमारी जो होती खुदपरस्ती
खुदा यूँ हमारे खुदाई ना हुए होते..!!

"वो" ही लिखता किस्मत गर सबकी
यूँ सौदाई ये ज़माने ना हुए होते..!!

"उसके" ही रहमो-करम पे चलती जो ये दुनिया सारी
यूँ पैगम्बरी ये अफ़साने ना हुए होते..!!

जो बाँधा होता "उसने" हमें गुलामी की जंजीरों से
यूँ शक्ल में "उसकी' ये परवाने ना हुए होते..!!

होता जो "वो" लेने वाला और "वो" ही देने वाला भी
यूँ मंगतों के लम्बे ये काफिले ना हुए होते..!!

माँगा होता "उसने" खुद को ही फकीर बन
यूँ हुस्न-ओ-दौलत के ये भिखारी ना हुए होते..!!

"उसके" लिक्खे को जो ले आते हम अमल में
यूँ बातों के ये पुलंदे ना हुए होते..!!

वेद-ओ-कुरआन की आयतें जो रटते रहते 'मनीष'
यूँ बहिश्त में बिस्मिल के नज़ारे ना हुए होते..!!

Thursday, March 8, 2012

have i made it large ???


i wish a very happy women's day to the womanhood of the world !!

Women Oh Women !!
Please accept this rose with thorns...
Be happy...inspite of us !!
Be happy...not only on woman's day
but all through the life...
Be happy...not only in success
but also through strife...

i also wish all of you, men & women, a very happy & colorful Holi !!

Oh men & women !!
Please accept all the colors of life...
Be it black, white or grey !!
Choose to choose them all in their totality...
whatever be their shade !!
Drink life, drink life, drink life...


have i made it large ???

इश्क पे यूँ इलज़ाम न लगा तू वाईज
पीते हैं हम यूँ करके
की
नफरत हमसे होती नहीं...

पीने को  पीते हैं हम सुबह-ओ-शाम
पे सहर हमारी होती नहीं...

होती हैं तमन्नाएं रोज यहाँ पूरी
पे तिश्नगी कम होती नहीं...

दिल ही दिल हो जाते हैं हम
पे होशियारी कम होती नहीं...

दोस्त भले न बन सके हम किसी के
पे गद्दारी किसी से होती नहीं...

दुश्मन ही सही हम ज़माने के
पे बेवफाई  किसी से होती नहीं...

भूल जाते है हम सब-कुछ पी-पाकर
पे  यादें कभी कम होती  नहीं...

कई-कई नशे किये बैठे हैं हम यहाँ
पे लत  बेईमानी  की कम होती नहीं...

ग़मगीन हो पूछता हूँ खुदा से दुनिया भर के सवाल
पे जवाबदारी खुद की  तय होती नहीं...

मुफ्त ही पिला दूँ इश्क मैं तुमको
पे प्यास तुममें होती नहीं...

पी-पीकर हुआ जाता है  दीवाना 'मनीष'
पे  कमीनाई  कम होती नहीं...

Friday, March 2, 2012

आपकी नज़र

मक्ता ये है जनाब की

फूँक दिया तुने कुछ ऐसा जोश मुझमें 
के बस एक सांस ही अब काफी होती है
ले आने को जोश-ए-जूनून,
मिटा लेता हूँ बंद आँखों से
ये तेरे-मेरे बीच की दूरियाँ
आ जाता है दिल को सुकून...

ये ग़ज़ल नज़र करता हूँ
उन्हें....
 जिनके पास आँख है



एक बेचैनी है ये इश्क
के जब तक के
तुझमे-मुझमे एक होने का एहसास नहीं...

एक सनसनी है ये दुनिया
के जब तक के
रात को दिन हो जाने की आस नहीं...

आँखें नहीं - दिल खोलकर देख नफासत से
के जब तक के
तू नहीं - हो रहा कोई रास नहीं...

सुकून नहीं इन निगाहों को
के जब तक के
तेरे पिया का इनमे वास नहीं...

देख पृथ्वी को दूर खड़ा हो चाँद पे
के जब तक के
एक ही वक़्त में नज़र ना आ जाए तुझे
अमेरिका में दिन और भारत में रात नहीं...

ये दो का मायाजाल है तब तक
के जब तक के
पूर्ण को देख सकने वाली आँख तेरे पास नहीं...

क्यूँ सताते हो तूम इश्क को
अपने दुखड़े सुना-सुना
के जब के
इश्क का होता सुख-दुःख से कोई सरोकार ही नहीं...

क्यूँ तेजी से धडके है ये दिल
क्यूँ पियु-पियु की करे है ये पुकार
के जब के
ना " पि " नज़र के सामने
ना " हूँ " में उसके पास
और
है मिलन की कोई बयार नहीं...

मेरा " मैं " मुझसे जुदा तो नहीं
तेरा ये " सच " तेरी कोई नई अदा तो नहीं
उफ़, ये तेरे-मेरे की भावना
मन बन गया कहीं खुदा तो नहीं...

तेरा मुझसे
यूँ कुछ खिंचा-खिंचा
कुछ दूर-दूर रहना
मिलवा कर हमें
हो गयी उससे कोई ख़ता तो नहीं...

और आखिर में ये भी कह दूँ जनाब की

रूह तो मेरी देख चुके हैं आप जाने कब से ही
सुना है मगर
की अलफ़ाज़ हमारे आपकी नज़र-ए-इनायत के काबिल नहीं...