Monday, May 21, 2012

बैंड, बाजा, बरात


एक वक़्त था
जब बैंड, बाजा, बरात का इंतज़ार हुआ करता था हमें
पर अब...

जबसे बेसुरे जुड़े हैं गायक
कानफोडू हुए हैं बैंड-बाजे
शोरगुल मचाते हैं DJ
और दिखावटी हुई है बरात...

सिर्फ बीमार ही नहीं
अस्पताल पहुँच जाते हैं होशवाले भी ढोल धमाका सुन...

समझ नहीं आता
की
किस तरह शान्ति की दरख्वास्त की जाए
इन तमाशबीनो से..!!

भला हो "सत्य मेव जयते" का
और मसले के बुरहानपुरी इलाज का
सुझाई है जिसने हमें

नो बैंड, नो बाजा, नो बरात अपनाने की तरकीब

अब भी हमपर रुतबा जमाना चाहतें हैं गर हमारे हबीब
तो लिफ़ाफ़े वाला व्यवहार ना अब होगा उन्हें हमसे नसीब..!!

सबसे बेहतर है ज़िन्दगी को सादगी से हर पल जीना
बिना इस बात की फ़िक्र करते हुए की
गलतियाँ हुई हमसे क्या जो बना गई कई रकीब
या फिर ये की
किस तरह बन सकता है इन्सान हर दिल अजीज..!!

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