Wednesday, February 13, 2013

RELYING ON ME, MYSELF AND MY THINKING.

प्रिय दैनिक भास्करियों,


एक वैष्णवी पंडित आज अपने ही नारायणी अवतार के सुदर्शनिय क्रोध द्वारा रचित, निहित, संभवित, फलित कई सारे द्वापर युग कालीन यदुवंशी युद्धों को अज्ञानवश या यूँ कहें की पंडिताई मूर्खतावश, अहंकार का तमगा दे गया।

अहंकार कभी मिटा नहीं सकेगा रे तू पीत पत्रकारिता जगत के विजयी पंडित ....की जो है ही नहीं उसे क्या ख़ाक मिटायेंगे हमरे भोले शंकर?

तू मैं हटा रे मेहता, मैं हटा ...तब कहीं जाकर शायद तुझे क्रोध के तल में जगत कल्याण के लिए गरल में विष होते हुए भी करुणा का असीमित भण्डार लिए त्रिपुरारी में बैठे दिख जायें तुझे भोले भंडारी। तुम्हारे हनुमान भी माता पार्वती के चरणों में भक्तिभाव में लीन हुए बैठे तुम्हे शायद दर्शन दे देंगे वहाँ। और ना दिखे तो समझना मत, बस जान लेना की दिव्य दृष्टि पाने की किस्मत नहीं तुम्हारी। तुम बस कल्पेषित याग्निकता से परिपूर्ण दिव्य भास्कर जगत में ही रहो ...शायद ये ही मनवांछित नियति तुम्हारी।

अपनी ब्रांडेड छवि के बारे में विस्तारपूर्वक या कल्पेषित याग्निक तुलनापुर्वक अगर और खुद को पढने की चाह हो तो मृणाल पाण्डे जी की आज की अभिव्यक्ति जरुर पढ़ लेने का समय निकाल लीजियेगा पंडित जी। या फिर अपने PA से कहियेगा आपके समस्त केवल उनका सिमित दृष्टिकोण व्यक्त करने को। सुना है की वो प्रवीणता के जैन हैं, शाह हैं।

joke:

एक बार नरेन्द्र मोदी जी की मुलाक़ात धीरुभाई अम्बानी जी से हुई। मोदी जी उस समय संघ के महज एक अदना से कार्यकर्ता थे और धीरुभाई एक उभरते हुए सितारे।
मोदी जी: सुना है आप कहते हैं की "बड़ा सोंचे, जल्दी सोंचे, आगे की सोंचे। विचारों पर किसी का एकाअधिकार नहीं।" क्या ये सच है?
धीरुभाई: जी हाँ, बिलकुल।
मोदी जी: पर हमारे नरेन्द्र नाथ उर्फ़ विवेकानंद जी तो कहते हैं की "लगातार पवित्र विचार करते रहें। बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।" तो हम क्या करें? बड़ा सोंचे, जल्दी सोंचे, आगे की सोंचे या फकत पवित्र विचार करें?
धीरुभाई: तुम कुछ नहीं कर पाओगे जब तक के Reliance पर Rely या Invest नहीं करोगे अपना vote bank.
मोदी जी: करूँगा ही नहीं करवाऊंगा भी ....जरुर करवाऊंगा। प्रॉमिस छे।
धीरुभाई: ते डील पक्की। तमे प्रधानमन्त्री बनवाई ने ही छोड़ेगा रिलायंस परिवार नो बच्चो-बच्चो।

           
THE TRUTH THOUGH IS BEYOND THINKING IN JUST WATCHING OUR THOUGHTS IN A MEDITATIVE NO-MIND STATE.
Man is bad case.... isn't it?

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