Wednesday, April 17, 2013

मन की बातें / Art of Parenting

मन की बातें 


बस इतना ही कहना चाहूँगा आज की जीवन क़तई भी कोई द्वन्द नहीं है युद्ध नहीं है
जीवन आनंद है, उत्सव है
पर हाँ ...
हमारा मन उसे जरुर एक द्वन्द में, एक युद्ध में, एक संघर्ष में तब्दील कर देता है 
क्यूँकी  ..
हम अपने मन के गुलाम होकर जीने लगते हैं
 - पल पल हर पल
तो दोष मन का नहीं बल्कि हमारा है 
क्यूँकी 
मन ने तो अपना ईमान कभी नहीं छोड़ा
पर बात - बात पर डीग जाता ईमान हमारा है  
मन का कोई कसूर नहीं इसमें
सार कसूर हमारा है 
इसिलए तो कहता है ये 'दीवाना वारसी'
की मन इश तो हम बद कस ( MAN IS BAD KASE ;-)  
क्यूँकी ..
उसकी तो भूमिका ही है 
संसार को, जगत को, चीजों को, लोगों को, इत्यादि को ...
दो अथवा अनेक भागों में 
बाँट-बाँट कर देखने की, समझने की, जान लेने की 
अंतरात्मा की अनुभूति को तो जैसे ये मन 
मात्र एक खेदपूर्ण काल्पनिक जगत में 
बेतुका विचरण मानने लगता है   
इसे ही मनीषी कहते हैं द्वैत का दैत्य 
सारे संत-फकीर-पैग़म्बर मगर 
कहते हैं इसे आईने पर छाया हुआ महज एक गुबार
पाक-साफ कर ले जो नीयत को तो कहलाता उल्ल्हास   
सुझाते हैं पीर-मुर्शिद-औलिया-वली-अली 
और वो सभी फ़क़ीर जो पा चुके हैं बुद्धत्व 
इस नरकीय दैत्य से निजात पाने के लिये 
है केवल एक ही समाधान
वो है ध्यान - ध्यान - ध्यान
फिर ये बात अलग 
की कोई इस ध्यान अवस्था में कहता है 
सबका मालिक एक 
तो कोई कहता है 
एक ऊंकार सतनाम
कोई 
अप्पो दीपो भवः
तो कोई 
अहम् ब्रह्मास्मि
तो कोई और कहता है 
अनल हक़ अनल हक़ अनल हक़ 
पर घूम फिर कर बात वहीँ आ जाती है 
की;    
ना तो वहाँ कोई परमात्मा है 
ना है वहाँ कोई मंत्र-जाप, 
ना पूजा-पाठ होती है वहाँ 
ना अता की जाती है वहाँ पांच बार की नमाज़  
और ना ही होता है वहां कोई सोचने-समझने वाला जन-मानस, जीवन प्रबंधक या गुलाम 
होता है वहां महज एक निदान, सहज एक ध्यान
इबादत की जाती हैं वहां पल-पल हर पल 
सत्य की, प्रेम की और न्याय की  
यूँ कहने वाले उसे "ज़ेन" भी कहते हैं 
ज़िन्दगी का भी सिला कहते हैं कहने वाले
जीने वाले जिसे गुनाहों की सज़ा कहते हैं
सबकुछ कहना चाहते हुए भी 
कुछ भी नहीं कह पाते हैं गुलफाम :-)

पल-पल तरसते रहे उस पल के लिए हम 
वो पल आया भी तो बस एक पल लिए 
बस... अब यही सताता है बनकर ज़िन्दगी का ग़म 
सोचा था की उस हसीन पल को बाँध लेंगे हम 
जकड़कर उसे अपनी गुदाज बाहों में अपना बना लेंगे उसे हम
हमेशा - हमेशा के लिए  
उस एक पल में अपनी पूरी ज़िन्दगी जी लेंगे हम
अफ़सोस मगर के ये हो ना सका !! 
रुका बस एक पल के लिए वो हसीन पल हमारे पास 
और जाते - जाते ढा गया ग़ज़ब का खुनी सितम
हाए सितम !! हाए सितम !! हाए सितम !!    
       

ना मैं पिता हूँ 
और 
ना ही तू है माता 
असल में तो जो कुछ है 
वो है बस परम पिता परमात्मा
या कह लो उसे सद्चिदानंद आनंदमयी माँ
वो शिव भी है 
वो शक्ति भी है 
या यूं कहूँ की वो शिव-शक्ति है
अर्धनारेश्वर है वो अभेद 
नहीं उसमे कोई नर-नारी का भेद
हम तो बस एक माध्यम हैं 
जो रचे गए हैं इस संसार में 
निभाने को अपनी सज़ा-ए-क़ैद 
किये थे ज़ुल्म हमने कई जान-बूझकर 
हुए थे, होते हैं और होते जाते हैं  
कई गुनाह हमसे रोज़-दर-रोज़ 
कुछ ग़ालिबन, कुछ बातिमन तो कुछ ज़ाहीरन
उस दिन से 
जिस दिन से 
खा लिया हमने 
इल्म का वो खट्टा-मीठा सेब ...     
  

CHILDREN: 

"AND a woman who held a baby against her bosom said, Speak to us of Children. And he said:

Your children are not your children.
They are the sons and daughters of life's longing for itself.
They come through you but not from you.
And though they are with you they belong not to you."
                         
"You may give them your love but not your thoughts,
For they have their own thoughts.
You may house their bodies but not their souls,
For their souls dwell in the house of tomorrow, which you cannot visit, not even in your dreams.
You may strive to be like them, but seek not to make them like you,
For life goes not backwards, nor it stops on yesterday.
You are the bows from which your children as living arrows have been shot forth.
The archer sees the mark upon the path of the infinite,
And He bends you with His might so that His arrows may go swift and far.
Let your bending in The Archer's hand be for gladness;
For even as He loves the arrow that flies, so He loves the bow that is patiently stable."
                                                                                                                                                       -खलील जिब्रान 

Man is bad case....isn't it?

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