Sunday, December 22, 2013

CHANGE IS THE ONLY PERMANENT FACTOR



कहते हैं वो बाबस्ता हमें बदलने कि कोशिश करते हुए कि, 
 "यदि शांति चाहते हो तो दूसरों को बदलने कि अपेक्षा मत रखो…ख़ुद को बद्लो…ज़ैसे कंकर से बचने ले लिए जूते पहनते हैं, धरती पर कालीन नहीं बिछाते।"
जवाब देते हैं हम भी हँसते हुए कि,
 "चाहत यथार्थ नहीं, अपेक्षा प्रयास नहीं, बदलना सार्थक, बचना निरर्थक, पहनते हैं हम लिबास वकती मिजाज नहीं, बिछाते हैं कालीन आशिक़ी बा हक़े तख्तोताज़ नहीं।"

कुछ समझ आया मियाँ गुल्फ़ाम?
कब तक पढ़ते रहोगे किताब-ए-ईमान? 



तबियत हमारी ही नासाज थी उन दिनों 
वर्ना साज़ तो जुग जुग से बेकल था बजने-बजाने को…

कुछ इस कदर बेइंतहा चाहा उसने मुझे कि 
मेरी एकमात्र सफलता भी मुझसे छीन ली गई 

या तो इस मृतप्राय: जगत में कुछ भी जीवित नहीं 
या इस जीवित जगत में कुछ भी मृत नहीं

वक़्त का फूहड़ मज़ाक तो देखिये जनाब  
सौंपा गया हमें उन लोगों में अंग्रेजी भाषा के लव कि आधारशीला रखने का दायित्व
जिन लोगों में ना हिंदूवादी संस्कार, ना कुशल व्यवहार और ना ही हिंद तमीज़

     



Man is bad case....isn't it?

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