Thursday, January 22, 2015

जो है सो है - It is what it is


रोज रात मर जाता मैं 
सुबह फिर जी उठता हूँ मैं 
उम्र हो गयी चलते हुए ये नाटक-नौटंकी
जाने कौन जिलाता है मुझे यूँ 
जाने क्यों जिलाया जाता हूँ मैं

क्या वो तुम हो या है वो मेरा नसीब
क्या वो इश्क़-ओ-जूनून है या है कोई अज़ाब 

क्या वो सब्र-ओ-सुकून है या है वो कोई यकीन अजीब 
क्या वो कोई इब्तदा है या है वो कोई बेइंतेहा सा ख्वाब 

इम्तेहान है वो या है वो मेरे मनचले दिल की कोई बेजान सी तरकीब
दोस्त कहूँ मैं उसे या फिर मान लूँ कोई बेपरवाह रकीब 

जो भी है, है वो बड़ा दिलकश या है शायद कोई जानेमन हसीन....,

कभी साथ होता है वो मेरे मेरा हमदर्द बनकर 
तो कभी साथ देता है वो बनकर के मेरा हमसफ़र
हमनशीं बनकर निभाता है साथ कभी वो   
तो कभी हमसाया हो जाता है साथ मेरे जैसे साया कोई

सदियों से खेला जा रहा है ये खेल मुक़द्दर का मेरे साथ 
या फिर शायद, ये है मेरी गुस्ताख़ नियतों की सलीब 
तनहाई सोती है यूँ तो रोज रात मेरे साथ
अकेलेपन में मगर पाता हूँ मैं खुद को खुद के सबसे करीब

क्यों हुजूर, है ना बड़ी अजब-गज़ब ये इश्क़ की सौगात
हर सुबह उठाती है तनहाई मुझे बनाकर के 'दीवाना' ज़हनसीब 

ना-नुकुर करने की बड़ी ही मज़ेदार आदत है उनको
बड़ी नाज़-ओ-अदा से ज़ुल्फ़ें झटक के कहते हैं वो 
की कोई उम्मीद नहीं बची अब तेरे-मेरे मधुर मिलन की
जा मर जा यूँ ही तू बदनसीब 

पूछता हूँ बड़ी ही मासूमियत से मैं उनसे फिर 
की तय ही है जब सब तो जी रहे हैं हम यूँ मर-मर कर क्यूँ 

जाने क्यूँ है मुझे पूरा यकीन 
की गर उन्हें अपनी निराशा भरी सोच के दुष्परिणामों की ज़रा भी खबर होती 
तो वो कभी भी मेरी आशा भरी सपनो की दुनिया को दोषपूर्ण ना मान बैठते
जीने देते वो मुझे मेरे हाल पे, यूँ मुझे बीमार-ए-दिल ना मान बैठते  

क्या करें मगर मैं जो हूँ सो हूँ 
जो है सो है और जो नहीं है सो नहीं है.........!!

        


Man is bad case....isn't it?

Wednesday, January 14, 2015

Loneliness ain't Solitude - अकेलापन एकाकीपन नहीं

  1. Makar Sankranti marks the transition of the Sun into the zodiac sign of Makara rashi (Capricorn) on its celestial path. The day is also believed to mark the arrival of spring in India and is a traditional event. Marathi families celebrate the festival by giving til-gud to all and sundry. Kites are also flown to thank the air and to colour the sky. 
  2. Lohri and Pongal are the harvest festivals which are celebrated with pomp and show by Punjabi and Tamil families to thank mother nature for her givings to her children.
  3. अकेलापन एकाकीपन नहीं - तनहाई एकांत नहीं 
  4. ना तुम अकेले वहाँ, ना मैं अकेला यहाँ,
  5. संग दुनिया के झमेले और साथ मन मैला जहाँ,
  6. ये लम्बी जुदाई, ये बिछडन, ये तनहाई सताए हमें हर वक़्त,
  7. कैसे सजा लें हम ऐसे माहौल में एकाकीपन का मेला…
  8. माना के देनी होती है आज़ादी भी इश्क़ के साथ-साथ,
  9. बरसों बीत गए मगर थामे हुए तेरा नरम-मुलायम हाथ,
  10. तू ही बता दे अब ए रोशन सूरज,
  11. कब आएगी तेरे होते वो चाँद-सितारों की झिलमिल बारात,
  12. कब विदा लेगी ये ग़मगीन अंधेरों से भरी काली स्याह रात,
  13. कब ले सकेंगे ये दो जिस्म एक जान सात फेरे तेरे साथ..??...??....??.....
Man is bad case....isn't it?

Saturday, January 10, 2015

दिल की बातें

दिल की बातें दिल ही जाने 


आकर गिरा था एक परिंदा लहू में तर,
तस्वीर अपनी छोड़ गया एक चट्टान पर 

उसी वक़्त के लिए ही तो है ये सारी जद्दोजहद जब कर सकूँ मैं तुझसे तेरे दिल की बात,
कहूँ तो मैं अपनी जबान से कुछ और तुझे लगे की मेरी जुबान कहे तेरे दिल की बात 

मेरी बर्बादियों का मेरे हमनशीनो,
तुम्हे तो क्या मुझे भी कोई गम नहीं 

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बर्बाद,
इसका गम है की बहुत देर में बर्बाद किया 

मुझे तो याद नहीं तुम्हे खबर हो तो हो शायद,
लोग कहते हैं की मैंने तुम्हे बर्बाद किया 

बोल ना क्या करूँ मैं के तुझे सुकून मिल जाए,
हो बस तेरा तसव्वुर और तू छम से सामने आ जाए

 दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं, ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है 
  


Man is bad case....isnt it?

Sunday, January 4, 2015

कैसी तेरी राहगीरी- कैसे तेरी राह गिरी (राहगीरी - street smartness)

"अति का भला ना बरसना, अति की भली ना धुप,
 अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप"
कैसी तेरी राहगीरी, कैसे तेरी राह गिरी  
 Light  नहीं थी, fog था,
प्रकाश था, रौशनी थी पर बिजली ना थी,
राह थी, राहगीर थे पर राहगीरी में ना था आज वो दम दमा दम दम,
ना ढोल थे, ना नगाड़े थे जो करते ढम ढमा ढम ढम,
ढक्कन थे बस कुछ, जो बेवजह भर रहे थे दम,
बगड़ बम बम बगड़ बम बम बगड़ बम बम 

नाद था, निनाद था, उत्साह था, उल्ल्हास था पर थी ना उनमे वो पहली सी उमंग,
ध्वनि का ना शोरगुल था, ना ऊऊऊऊऊऊ की चीत्कार थी,
और ना ही मचा रहा था कोई बेबुनियाद हुड़दंग,
जाने कौन उनकी इस लष्करी ललकार को सरेआम कर गया भंग,
बत्ती कर गया गुल वो इस prizeless फैशन परेड की,
ruthless स्ट्रीट smartness की,
मनमोहक नाज़-ओ-अदाओं की सुबह-सुबह ही,
जाने कौन घोल गया आज हवाओं में ये ज़हर,
आब-ओ-हवा में छ गया जैसे कोई मायूस मातमी रंग,
जाने कहाँ उड़ गयी वो 'ये जवानी है दीवानी' की मस्ती भरी तरंग,
मैं मलंग, मैं मलंग, मैं मलंग 

टेक्नोलॉजी की गुलामी आज फिर ज़ाहिर कर दी गयी हमपर बेधड़क,
आम दिनों की तरह ही आज भी सुनसान ही पड़ी रह गयी वो नामचीन शोशेबाजों की संडे वाली सड़क,
हाए....कब आएगी लौट के फिर वही चमक-धमक, वो करतल ध्वनि, वो तड़क, वो भड़क,
कब धड़केंगे सीने हमारे सुनकर के दिल की झनक, वो आत्मा की आवाज़, वो ऊँकार की धनक...??
कैसी तेरी राहगीरी, कैसे तेरी राह गिरी

"नूर-ए-खुदा,  नूर-ए-खुदा 
तू कहाँ छिपा, मुझे ये बता" 
        


Man is bad case....isn't it?

Thursday, January 1, 2015

नया साल आ गया है तो क्या करूँ?

तेरे दिल को ठेस पहुँचाना न मेरा मक़सद, न मेरी मंशा और न ही मन्नत है कोई...,
क्या करूँ मगर, मोहब्बत फिर मोहब्बत है, कारोबार नहीं कोई..!!



हाँ जी......तो नया साल आ गया है तो क्या करूँ?
ढोल पीटूँ, नगाड़े बजाऊँ, नाचूँ, गाऊँ, जश्न मनाऊँ
तुम्हारी ही तरह किस बात पे मैं यूँ इतराऊँ  
तुम्हारी अदाओं पे मैं कैसे जाऊँ वारी
ना जी...हमसे ना हो सकेगी ये मक्कारी 
दुश्वार हमें ये मुहँ दिखाई की रस्म 
पीला दो चिलम या फिर कर दो हमें भस्म
आप कहो तो झूम के बरस जाऊँ काले-काले बादलों की तरह 
या फिर बहने लगूँ जिस्म-जिस्म में बन के शीत -लहर 
आप हुकुम करो बादशाहो तो मर-मिट जाऊँ इश्क़ की तरह 
या फिर उगलूँ आग पी के मीरा वाला ज़हर 
रोज ही तो मर-मिट रहें हैं तेरे रोजनामचे मैं हम
लड़-झगड़ के तेरे नाम पे ज़िन्दगी को जहन्नुम बना रहें हैं हम 
यूँ लम्हा-लम्हा भाड़ में ही तो जी रहें हैं हम 
किसी ख्वाबगाह का नहीं दिखाई पड़ रहा कोई नामोनिशान 
यूँ कहने को मंगल की बुलन्दियों को छू रहे हैं हम
जाने कब इंसानियत की, नेकी की, दीन-ओ-ईमान की बुलन्दियों को छुएँगे हम 
एक अरसा हुआ 'दीवाने वारिस' लिए हुए तुझे इश्क़-ओ-जूनून की कसम
हाफ़िज़ पिया के सदके "मज़े हैं प्यारी के" चाहे जितने ढा लो तुम सितम
सुना है हमने की सही और गलत के मैदानों के पार है वारिस पाक का महल 
देखते हैं किस दिन मिलेंगे वहाँ दो जिस्म बन के एक जान
तब तक तो यूँ ही मनाते रहेंगे हम हैप्पी न्यू ईयर ओ मेरे सनम...      

Man is bad case....isn't it?