Friday, April 10, 2015

देशी दारू


कल शाम एक देशी शराब ने वो लुत्फ दिया दुबारा
की हम में बसे कई विदेशी जामों कि बज गई बारा
हो गए हम नौ दो ग्यारा...

माफी दई दो फिर एक बार सनम दिलदारा
माँ कसम फिर न झगडेंगे हम तुमसे कभी दुबारा
दई दो जनम दोबारा...

गुस्सा आया भी तो पी जाएँगे हम सारा
तेरी झील सी आँखों से पानी हम खारा
ध्यान रखजो हमारा...

लबों को दबा लेंगे अपने ही दाँतों से हम
ज़ुबाँ जो हमारी ज़हर उगलना चाहेगी दुबारा
तौबा की चीत्कारा...

तड़प जो हमें और भी तड़पाएगी
उड़ेल देंगे दिल की गलीयों में ग़म अपना सारा
थामा दामन तुम्हारा...

अब ना बाँटेंगे हम अपना किताबी ज्ञान किसी को
बह तो रही है जीवन में ध्यान की सतत मंगल धारा
सकल काज तुम्हारा...

चारों ओर छाई हुई है उसकी ही रास लीलाएँ
देखा करेंगे बस हम टकटकी लगाकर खेल ये सारा
वारी तुमपर यारा...

देगा वो दर्शन, करवाएगा वो मिलन दो जीस्म एक जान का
ये अटल-अटुट विश्वास है मुहब्बत पे हमारा
हाफिज खुदा हमारा...
हाफिज खुदा तुम्हारा...


Man
is
bad
case....isn't it?